Wednesday, June 9, 2010

तेरी मां भी कभी जवान थी ओए कुंजड़े

हर औरत जवान होती है
तेरी मां भी जवान थी
जो सुख तूने किसी औरत के साथ लूटे
वही तेरी मां के साथ लूटे जाते थे

तेरी मां भी जवान हुआ करती थी
एकदम जोश का तूफान हुआ करती थी

जो तू सोचता है
वही सब कुछ होता था तेरी मां के साथ

तेरी मां ने तुझे पैदा किया
लेकिन तुझे संस्कार नहीं दिये
सिर्फ नाचना सिखया
ठुमके लगाना सिखाया

क्योंकि वो छोड़ गई थी तुझे जन्म देकर

कचरे के ढेर में
कचरे के ढेर में तू पला
कचरे खाया, कचरा सोचा
कचरा तेरे दिमाग में भर गया
उसके पास भी था एक जोड़ा
जिससे तू कभी दूध नहीं पी सका


तेरी मां की भी क्या गलती थी
क्योंकि तेरे पास एक असली बाप का नाम नहीं था

हरामी होने का दंश भोगता रहा
अब वही दंश समाज को लौटा रहा है
ठुमके लगा रहा है


हरामी होने की यही नियति होती है
जो कि आज तेरी है

9 comments:

  1. आपने तो जोरदार तमाचा जड दिया इस कुम्जडे को.

    ReplyDelete
  2. आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।

    आचार्य जी

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर कविता, एक कुंवारी मां के बच्चे की दर्दनाक स्थिति प्रकट की है..

    ReplyDelete
  4. behad samvedansheel...ye kavita ki nahi ye dil ki jabaan hai...bahut khoob...

    ReplyDelete
  5. बकवास

    ReplyDelete
  6. इनकी बेटी भी जवान होगी जल्दी ही

    ReplyDelete
  7. वाहियात लिखते हो दोस्त.....लिखने से पहले सोचा तो करो....

    ReplyDelete
  8. जोरदार और धारदार रचना.

    ReplyDelete
  9. रूपचन्द्र शास्त्री जैसा बुड्डा वहां हिजड़े जैसी तालियां क्यों पीट रहा है,

    ReplyDelete